अंधेरे से घिरा विक्षिप्त
तू चाहे
कितनी भी कर ले
सोचने समझने की नौटंकी
परिवेश के बारे में
अपने कौम के उन्नयन की
दिशा-दशा
के बारे में
उधार के शब्दों से
चाहे बुन ले
संदेह के मकडजाल
पर तेरा अंतर्मन
साथ नहीं देता
कथनी और करनी की
भयंकर विसंगति से
घीसे-पीटे शब्दों के
अरण्यारोदन से
जब तेरा ही गला
सूख जाता है तब
किसी अध्यापक की
लाचार विवशता को
बंधक बनाकर
रिश्वत के रूप में लिये
फ्रिज का पानी भी
तेरी विकृत प्यास
बुझा नहीं सकता....
तू चाहे
कितनी भी कर ले
सोचने समझने की नौटंकी
परिवेश के बारे में
अपने कौम के उन्नयन की
दिशा-दशा
के बारे में
उधार के शब्दों से
चाहे बुन ले
संदेह के मकडजाल
पर तेरा अंतर्मन
साथ नहीं देता
कथनी और करनी की
भयंकर विसंगति से
घीसे-पीटे शब्दों के
अरण्यारोदन से
जब तेरा ही गला
सूख जाता है तब
किसी अध्यापक की
लाचार विवशता को
बंधक बनाकर
रिश्वत के रूप में लिये
फ्रिज का पानी भी
तेरी विकृत प्यास
बुझा नहीं सकता....
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