Wednesday 22 August 2018

मध्ययुगीन कवियों में कबीर की प्रासंगिकता सर्वमान्य है। कबीर की वाणी की यही प्रासंगिकता उसे हमेशा ताजगी से भर देती है। कबीर जिस अंदाज से भेष पर चोट करते हैं उसका कोई जबाब नहीं. गागर में सागर भरदेने वाली शब्द योजना और कसौटी पर खरा उतरता तर्क, अपने आप में बेजोड है।

केसों कहा बिगाड़िया, जो मुँडै सौ बार ।
मन को काहे न मूंडिये, जामैं बिषय-बिकार ।।

किसी भी भेषधारी के संबंध में उनका वक्तव्य आज भी उतना ही मार्मिक है जितना कि उस समय...इसी आशय की एक वर्तमान कविता....

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